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Sunday, March 24, 2013
"निरंतर" की कलम से.....: अब मैंने डायरी लिखना बंद कर दिया है
"निरंतर" की कलम से.....: अब मैंने डायरी लिखना बंद कर दिया है: अब मैंने डायरी लिखना बंद कर दिया है डायरी के पन्ने खुद भी पढता हूँ तो उबकाई आने लगती है डायरी भरी हुई है रिश्तों के टूटने की यादों...
Tuesday, March 19, 2013
"निरंतर" की कलम से.....: हार कर भी जीत जाऊंगा
"निरंतर" की कलम से.....: हार कर भी जीत जाऊंगा: मैं इतना बलशाली नहीं तुमसे लोहा ले सकूँ पर इतना निर्बल भी नहीं तुम्हारे निरंकुश दुर्व्यवहार का प्रतिरोध ना कर सकूँ मैं हार ...
Monday, March 18, 2013
"निरंतर" की कलम से.....: बार बार समझाता हूँ
"निरंतर" की कलम से.....: बार बार समझाता हूँ: बार बार समझाता हूँ बार बार पूछता हूँ क्यों क्रोध करते हो बात बात में चिढते हो क्या धैर्य धीरज भूल गए सहनशीलता से भी रुष्ट हो गए ...
"निरंतर" की कलम से.....: हाथों की लकीरों को देखता हूँ
"निरंतर" की कलम से.....: हाथों की लकीरों को देखता हूँ: हाथों की लकीरों को देखता हूँ सोचने लगता हूँ भाग्य की प्रतीक्षा करूँ या कर्म से भाग्य बनाऊँ हाथों की ताकत को काम में लूं पर जानत...
Wednesday, August 22, 2012
चिंतन........निरंतर का.......: ना तुम्हारी जीत ज़रूरी ,ना मेरी हार ज़रूरी
चिंतन........निरंतर का.......: ना तुम्हारी जीत ज़रूरी ,ना मेरी हार ज़रूरी: ना तुम्हारी जीत ज़रूरी ना मेरी हार ज़रूरी दिलों में नज़दीकी ज़रूरी मैं हार भी जाऊं पर दिल से नहीं लगाऊँ तुम जीत भी जाओ गर स...
चिंतन........निरंतर का.......: पवित्र रिश्ते को केवल धागे से मत जोड़ो
चिंतन........निरंतर का.......: पवित्र रिश्ते को केवल धागे से मत जोड़ो: पवित्र रिश्ते को केवल धागे से मत जोड़ो थोड़ा सा आगे बढ़ो त्योंहार के पहले ही त्योंहार मनाओ हर दिन को रक्षाबंधन समझो जिससे...
चिंतन........निरंतर का.......: चिंतन ,मनन के बाद !
चिंतन........निरंतर का.......: चिंतन ,मनन के बाद !: रात भर सो नहीं पाया विचारों से व्यथित होता रहा किसी तरह आँख लगी ही थी कानों में चिड़ियों की चहचाहट सुनायी पड़ने लगी सवेरे क...
चिंतन........निरंतर का.......: ज़िन्दगी को समझने के लिए
चिंतन........निरंतर का.......: ज़िन्दगी को समझने के लिए: ज़िन्दगी को समझने के लिए खुशी के साथ गम भी ज़रूरी है हँसी के साथ आंसू भी ज़रूरी है जीत के साथ हार भी ज़रूरी है क्रोध के...
चिंतन........निरंतर का.......: जीवन की भट्टी में
चिंतन........निरंतर का.......: जीवन की भट्टी में: जीवन की भट्टी में मन अब तेज़ आंच पर चढी कढाई सा हो गया है विचार इस हद तक उबलने लगे हैं सब्र का पानी उफन रहा है सब कुछ अस्...
अहम् पर कविता -हार किसी को मंज़ूर नहीं
चार दिनों का
सब्र भी नहीं किसी को
पल पल भारी लगता
जीवन का
जब अहम् हो गया
जान से प्यारा
क्या करना फिर
दोस्त और दोस्ती का
जो भी
रह गया होड़ में पीछे
वही हारा कहलाता
हार किसी को मंज़ूर नहीं
क्या अपना क्या पराया
प्यार मोहब्बत गए भाड़ में
हर इंसान
फिर दुश्मन लगता
21-08-2012
673-33-08-12,
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