Sunday, October 30, 2011

"निरंतर" की कलम से.....: कल आज और कल

"निरंतर" की कलम से.....: कल आज और कल: कल आज और कल का क्रम कभी ना टूटेगा आज से कल बेहतर हो मन सदा चाहेगा बीता हुआ कल याद अवश्य आयेगा अच्छा रहा होगा तो मन को अभिभूत करेगा बुरा रहा...

Nirantar's.......: Why people are self centered?

Nirantar's.......: Why people are self centered?: Why people are Self centered? Think only about Themselves They feel Their desires are most Important Let others go to hell Not concerned A...

निरंतर कह रहा .......: क्यों लोग दोहरेपन से जीते ?

निरंतर कह रहा .......: क्यों लोग दोहरेपन से जीते ?: क्यों लोग तिल तिल कर मरते ? बेवजह रिश्तों को ढोते दिल में नफरत रखते निरंतर पीछा छुडाना चाहते हिम्मत नहीं जुटा पाते जुबां से कह नहीं पाते ऐ...

निरंतर कह रहा .......: मन में आया मैं भी एक कविता लिखूं

निरंतर कह रहा .......: मन में आया मैं भी एक कविता लिखूं: मन में आया मैं भी एक कविता लिखूं सोचने लगा किस विषय पर लिखूं तभी एक आवाज़ ने मुझे चौंकाया सर उठा कर देखा तो फटे पुराने कपड़ों में एक कृशकाय...

Saturday, October 29, 2011

Nirantar's.......: A healthy body means a healthy mind

Nirantar's.......: A healthy body means a healthy mind: Everybody wants A healthy body A compassionate heart A fine smooth mind A skin that glows Hairs that are soft And freely flow As smooth as ...

Nirantar's.......: Add laughter to your busy routine

Nirantar's.......: Add laughter to your busy routine: I felt My heart was pounding More than normal My worry Reflected on my face Which certainly looked? Tense and Abnormal My beloved Noti...

Tuesday, October 25, 2011

विश्वास


विश्वास
एक ऐसा शब्द जो हम निरंतर सुनते हैं ,जिस के बिना मनुष्य का जीवन नहीं चलता,विश्वास दो व्यक्तियों या व्यक्तियों के बीच संबंधों की धुरी के सामान होता है.
संबंधों का बनना,बिगड़ना परस्पर विश्वास पर ही निर्भर करता है.
विश्वास नहीं होता तो विश्वासघात भी नहीं होता .
ध्यान रखने योग्य प्रमुख बात है,विश्वास कभी एक पक्षीय नहीं हो सकता.
सदा द्वीपक्षीय होता है.
विश्वास पाने के लिए विश्वास करना भी उतना ही आवश्यक है,साथ ही मर्यादाहीन,अवांछनीय कार्यों और व्यवहार के लिए किसी से विश्वास की अपेक्षा करना, निरर्थक होता है.
डा.राजेंद्र तेला "निरंतर"
अजमेर
२५ -१०-२०११
25-10-2011
1709-116-10-11

कितना क्रोध उचित है


 हर ज्ञानी,महापुरुष ने सदा एक ही बात कही है,क्रोध नहीं करना चाहिए .
ग्रन्थ साक्षी हैं ,देवताओं से लेकर महा पुरुष,योगी और महा ऋषी भी क्रोध से नहीं बच सके .
क्रोध मनुष्य के स्वभाव का अभिन्न अंग है.
परमात्मा द्वारा दी हुयी इस भावना का अर्थ असहमती की अभिव्यक्ति ही तो है
पर उस में विवेक खोना ,जिह्वा एवं स्वयं पर से नियंत्रण खोना घातक होता है.
इसकी परिणीति अनयंत्रित व्यवहार और कार्य में होती है .जिस से बहुत भारी अनर्थ हो सकता है 
सब को निरंतर ऐसा होते दिखता भी है.
अतः क्रोध करना अनुचित तो है ही ,पर साथ में क्रोध आने पर,अपना विवेक बनाए रखना,जिह्वा और मन मष्तिष्क पर नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है.
असहमती अवश्य प्रकट करनी चाहिए पर विवेक पूर्ण तरीके से
डा.राजेंद्र तेला "निरंतर"
अजमेर
२४-१०-२०११
25-10-2011
1708-115-10-11

Monday, October 24, 2011

"निरंतर" की कलम से.....: विचारों का प्रवाह

"निरंतर" की कलम से.....: विचारों का प्रवाह: विचारों का प्रवाह मनुष्य के मष्तिष्क की एक सामान्य प्रक्रिया है पर सद विचार ही आयें , उसके लिये सत्संग आवश्यक है . सद विचार रखने वाले लो...

"निरंतर" की कलम से.....: पूजा,अर्चना

"निरंतर" की कलम से.....: पूजा,अर्चना: संसार का सृजन करने वाले एवं उसे चलाने वाले परमात्मा को भिन्न नामों से पुकारा जाता है अपनी अपनी आस्था और धर्म के अनुसार राम , कृष्ण , शि...

Saturday, October 22, 2011

"निरंतर" की कलम से.....: तुम्हें चलते रहना है

"निरंतर" की कलम से.....: तुम्हें चलते रहना है: तुम्हें रास्ता खुद बनाना है चट्टानों से फूट कर नदी सा बहना है इधर उधर ना भटक जाना मेहनत के पानी को व्यर्थ ना छलकाना गति पर अपनी काबू रखना...

"निरंतर" की कलम से.....: पुष्प की व्यथा

"निरंतर" की कलम से.....: पुष्प की व्यथा: सब मुझे पुष्प के नाम से पहचानते पर मेरी व्यथा नहीं समझते अपने में मग्न सब मेरी सुगंध सूंघते देख कर खुश होते बहुत चाव से पौधा लगाते व्या...

Sunday, October 16, 2011

"निरंतर" की कलम से.....: जीवन सफ़र को हँसते हँसते पूरा करना मुसाफिर

"निरंतर" की कलम से.....: जीवन सफ़र को हँसते हँसते पूरा करना मुसाफिर: जन्म संसार में लिया तुमने जीवन को सफ़र समझना मुसाफिर पथ से ना डिगना सपना जो देखा तुमने उसे पूरा करना मुसाफिर ना मंजिल से भटकना ना निशाना कभ...

Saturday, October 15, 2011

सुहाग मेरा निरंतर सलामत रहे,बस इतना ही चाहती हूँ


कब तक 
बादलों में छुपोगे?
मुझे इंतज़ार कराओगे 
कब बाहर निकल कर 
चांदनी फैलाओगे ?
अपना मुखड़ा दिखाओगे
मेरी तड़प मिटाओगे 
भूखी प्यासी बैठी हूँ
तुम में 
पीया को देखती हूँ
उसे ढूंढती हूँ
व्रत करवा चौथ का रख
लम्बी उम्र की दुआ
मांगती हूँ
सुहाग मेरा निरंतर
सलामत रहे
बस इतना ही
चाहती हूँ
26-10-2010

Thursday, October 13, 2011

"निरंतर" की कलम से.....: बुरे को बुरा ना कहूं ,अच्छे को अच्छा ना कहूं, ये म...

"निरंतर" की कलम से.....: बुरे को बुरा ना कहूं ,अच्छे को अच्छा ना कहूं, ये म...: बुरे को बुरा ना कहूं अच्छे को अच्छा ना कहूं ये मुमकिन नहीं आदत से मजबूर हूँ मेरी फितरत मुझे झूंठ बोलने देती नहीं बहुतों को नाराज़ किया दिल ...

"निरंतर" की कलम से.....: काँटों में भी सुन्दर फूल खिलते

"निरंतर" की कलम से.....: काँटों में भी सुन्दर फूल खिलते: गुलाब के पौधे में फूल बहुत सुन्दर खिलते निरंतर महकते सब को लुभाते फिर भी लोग उसके काँटों से दुखी रहते निरंतर पौधे में खोट निकालते य...

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों फितरत तुम्हारी मिटती नहीं ?

"निरंतर" की कलम से.....: क्यों फितरत तुम्हारी मिटती नहीं ?: क्यों फितरत तुम्हारी मिटती नहीं ? नफरत की आग बुझती नहीं मौत के मंजर से किसे सुकून मिला अब तक जो मजहब के नाम पर मासूमों की जान लेकर तुम्हे...

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी गली के नुक्कड़ का खंडहर नुमा अधबना मकान

"निरंतर" की कलम से.....: मेरी गली के नुक्कड़ का खंडहर नुमा अधबना मकान: मेरी गली के नुक्कड़ का खंडहर नुमा अध बना मकान बहुतों को पनाह देता जब भी उधर से गुजरता नया नज़ारा दिखता कभी कोई कचरे के ढेर से थैलियाँ बीन...

"निरंतर" की कलम से.....: बुरे को बुरा ना कहूं ,अच्छे को अच्छा ना कहूं, ये म...

"निरंतर" की कलम से.....: बुरे को बुरा ना कहूं ,अच्छे को अच्छा ना कहूं, ये म...: बुरे को बुरा ना कहूं अच्छे को अच्छा ना कहूं ये मुमकिन नहीं आदत से मजबूर हूँ मेरी फितरत मुझे झूंठ बोलने देती नहीं बहुतों को नाराज़ किया दिल ...

Monday, October 10, 2011

Nirantar's.......: When I am perturbed

Nirantar's.......: When I am perturbed: When I am perturbed I don’t know Where to go and what do ? I lose my patience The mind is agitated No relief from any where Thoughts do not...

Sunday, October 9, 2011

निरंतर कह रहा .......: माँ तुमने कभी निराश नहीं किया

निरंतर कह रहा .......: माँ तुमने कभी निराश नहीं किया: माँ तुमने कभी निराश नहीं किया जब भी विपत्ती आयी तुम्हारे पास दौड़ा चला आया तुमने गले से लगा कर सहारा दिया भूख लगी , तुमने भोजन खिला...

निरंतर कह रहा .......: छोटा सा दुःख

निरंतर कह रहा .......: छोटा सा दुःख: पैर में चुभा छोटा सा काँटा जी का जंजाल बन गया चलना फिरना दूभर हो गया अथाह धन भी काम ना आया आज काँटा निकल गया चलना फिर प्रा...

निरंतर कह रहा .......: जब भी कोई अपना बिछड़ता

निरंतर कह रहा .......: जब भी कोई अपना बिछड़ता: जब भी कोई अपना बिछड़ता वक़्त काटे नहीं कटता हर लम्हा पहाड़ सा लगता दिल निरंतर रोता खुशियों का समंदर सूख जाता मन रेगिस्तान सा सून...

निरंतर कह रहा .......: जीवन सुख के लिए

निरंतर कह रहा .......: जीवन सुख के लिए: पेट भरा हो स्वादिष्ट भोजन आँखों के सामने पडा हो खाने का मन करता पेट खाली हो स्वादिष्ट भोजन आँखों के सामने पडा हो खाने का मन नहीं करता ...

उच्चारण: " दिवस त्यौहार के आए" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मय...

उच्चारण: " दिवस त्यौहार के आए" ( डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री "मय...: महकता गन्ध से उपवन, धरा ने रंग विखराए। खुशी से खिल उठे चेहरे, दिवस त्यौहार के आए।। सुशोभित कमल सुन्दर हैं, सजे फिर से सरोवर हैं, सिँ...

sapne: निरह सी आँखे ,

sapne: निरह सी आँखे ,: निरह सी आँखे , देख रही है ...

abhivyakti: आत्म-मंथन

abhivyakti: आत्म-मंथन

Thursday, October 6, 2011

ठुकरा दो या प्यार करो


देव! तुम्हारे कई उपासक कई ढंग से आते हैं
सेवा में बहुमूल्य भेंट वे कई रंग की लाते हैं

धूमधाम से साज-बाज से वे मंदिर में आते हैं
मुक्तामणि बहुमुल्य वस्तुऐं लाकर तुम्हें चढ़ाते हैं

मैं ही हूँ गरीबिनी ऐसी जो कुछ साथ नहीं लायी
फिर भी साहस कर मंदिर में पूजा करने चली आयी

धूप-दीप-नैवेद्य नहीं है झांकी का श्रृंगार नहीं
हाय! गले में पहनाने को फूलों का भी हार नहीं

कैसे करूँ कीर्तन, मेरे स्वर में है माधुर्य नहीं
मन का भाव प्रकट करने को वाणी में चातुर्य नहीं

नहीं दान है, नहीं दक्षिणा खाली हाथ चली आयी
पूजा की विधि नहीं जानती, फिर भी नाथ चली आयी

पूजा और पुजापा प्रभुवर इसी पुजारिन को समझो
दान-दक्षिणा और निछावर इसी भिखारिन को समझो

मैं उनमत्त प्रेम की प्यासी हृदय दिखाने आयी हूँ
जो कुछ है, वह यही पास है, इसे चढ़ाने आयी हूँ

चरणों पर अर्पित है, इसको चाहो तो स्वीकार करो
यह तो वस्तु तुम्हारी ही है ठुकरा दो या प्यार करो
सुभद्राकुमारी चौहान

Wednesday, October 5, 2011

गुरू ही भगवान

आज का लिखना है 
गुरूवरआपकी ही देन
अक्षरों से पहला नाता
आप ही की भेंट
साक्षर बना कर 
हमेंदिया ये वरदान
गर्व से सर ऊँचा क
हम चलें स्वाभिमान
शिक्षा से ही दीप जलतेहैं 
सदा उन्नति केशिक्षक ही 
वो रोशनीप्रज्वलित करते
न ज्ञान सिर्फ विषय-विशेष
अनुभव ज्ञान बतातेहै 
नमन गुरूवर आपकोहै 
हमें ये अभिमान
जीवन को हमारे दिए

नित नए दिनमान…
शिक्षक दिवस पर सभी शिक्षकों को हमारा श्रद्धेय नमन…
induravisinghj

तुम्हारे लिए.........:   आकर्षण..........  जिन्दगी के इस उतार-चढ़ाव में...

तुम्हारे लिए.........:
आकर्षण.......... जिन्दगी के इस उतार-चढ़ाव में...
: आकर्षण.......... जिन्दगी के इस उतार-चढ़ाव में भी रहते हैं दोनों साथ-साथ.... कभी-कभी मौन, तो कभी कुछ बुदबुदाते, कुछ चीखते-चिल्लाते....

निरंतर कह रहा .......: भावनाओं में

निरंतर कह रहा .......: भावनाओं में: क्यों हम भावनाओं में निरंतर बहते जाते तेज़ गति से आगे बढ़ते जाते कभी नहीं सोचते जो हमारे लिए आवश्यक किसी और का दर्द होता स्वयं की इच्छाओं ...

Tuesday, October 4, 2011

निरंतर कह रहा .......: क्यूं नफरत को गले लगाया ?

निरंतर कह रहा .......: क्यूं नफरत को गले लगाया ?: जब भी किसी ने हम पर कोई इलज़ाम लगाया झूठे ही सही सर झुका कर हमने उसे कबूल किया लोगों ने नाजायज़ फायदा उठाया इलज़ाम लगाना उनकी आदत में शुमार...

"निरंतर" की कलम से.....: उनकी चंद बातों ने......

"निरंतर" की कलम से.....: उनकी चंद बातों ने......: उनकी चंद बातों ने सब्र रखने की सलाह ने दिल-ओ-दिमाग पर असर किया यूँ लगा बेघर को घर बेसहारा को सहारा मिला निरंतर बदहवास मन का हिम्मत और ...

औरत का जीवन भी जीवन है क्या

औरत का जीवन भी
जीवन है क्या
हर दिन नया जन्म
नयी शुरुवात है
इक ही जीवन के हैं
कई-कई रूप
इन रूपों में डूबी
औरत है कहाँ?
कहते हैं लोग औरत को महान
क्या सच में कर पाते हैं,
उसका मान…
माँ,बहन,बेटी न जाने 
कितने नाम
इन सब के बीच में
औरत ही रही गुमनाम।
कोई एक रूप वो
चुने भला कैसे
सम्पूर्णता पे उसकी ये
प्रश्न चिन्ह कैसे!
हर रूप में जीकर ही
बनती वो महान
अपने मूल रूप की न
कोई पहचान ?
निर्बल भी वो है,सबल भी वो
ममता भरी है,मृदुल भी वो
फिर भी है अपने आप से अंजान
रिश्तों में ही समाई है उसकी जान
कहते हैं लोग,औरत है महान.

"निरंतर" की कलम से.....: वक़्त बुरा हो ,किस्मत साथ ना हो

"निरंतर" की कलम से.....: वक़्त बुरा हो ,किस्मत साथ ना हो: वक़्त बुरा हो किस्मत साथ ना हो हर पासा उलटा पड़ता हिम्मत जवाब देने लगती होंसला टूटता है ज़ज्बा कम हो जाता खुद से यकीन उठने लगत...

Monday, October 3, 2011

sapne: मंजिल..........!

sapne: मंजिल..........!: मंजिल नयी सजानी है , रास्ते नए बनाने है . ...

"निरंतर" की कलम से.....: वाह रे,पेंसिल

"निरंतर" की कलम से.....: वाह रे,पेंसिल: मानव जीवन की महत्वपूर्ण देन है तूँ जन्म से अब तक निरंतर चल रही है तूँ इंसान के हाथों में खेल रही है तूँ ना थकती, ना...

आँखों की भाषा.... | कविता

आँखों की भाषा.... | कविता

आत्‍म-चिंतन: अपनी बात ...

आत्‍म-चिंतन: अपनी बात ...: अपनी बात सुनाने के क्रम में हम सोचते ही नहीं कि सामनेवाला भी कुछ कहना चाहता है....!!! रश्मि प्रभा

HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR: झील में उगता सूरज

HINDI KAVITAYEN ,AAPKE VICHAAR: झील में उगता सूरज: हरित पलाश पुंज मिले मिले गुलाबी कमल दल खिले खिले ! झील के आँचल में थिरकन देखो शिकारे चले चले ! बकुल श्रंखला करती आहार डूब के जल में गले ग...

varsha singh: वो नहीं आया ....

varsha singh: वो नहीं आया ....

sapne: माँ................!

sapne: माँ................!: न हिन्दू , न मुसलमान न सिख , न ईसाई . गौर से सब देखो मुझे , मैं हूँ तुम सब की माई . क्यूँ लड़ते हो...

sapne: अनमोल - अनुपम भेटं " बेटियां "

sapne: अनमोल - अनुपम भेटं " बेटियां ": खुदा की दी हुई एक अनमोल - अनुपम , ...

sapne: अभिव्यक्ति.............!

sapne: अभिव्यक्ति.............!: अभिव्यक्ति शब्दों से की जाती है अनुभूति रचनाओ से ली जाती है. दि...