Saturday, January 7, 2012

निरंतर कह रहा .......: सोच

निरंतर कह रहा .......: सोच: स्वछन्द आकाश में विचरण करने वाली पिंजरे में बंद कोयल अब इच्छा से कूंकती भी नहीं कूँकना भूल ना जाए इसलिए कभी कभास बेमन से कूंक लेती ना साथिय...

2 comments:

  1. बेहद ख़ूबसूरत ! बधाई !

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  2. आपके पोस्ट पर आकर का विचरण करना बड़ा ही आनंददायक लगता है । सदविचार अच्छा लगा । मेरे नए पोस्ट "लेखनी को थाम सकी इसलिए लेखन ने मुझे थामा": पर आपका बेसब्री से इंतजार रहेगा । धन्यवाद।

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