जीवन संस्कार,प्रेरणास्पद लेख,संस्मरण, सूक्तियों,कहावतों, का सांझा मंच
द्वार सब के लिए खुले हैं,आएँ उध्रत करें या लिख कर योगदान दें ......
Sunday, May 6, 2012
निरंतर कह रहा .......: प्रेम का समुद्र
निरंतर कह रहा .......: प्रेम का समुद्र: पानी की बूँद था , अपने प्रेम से तुमने उसे समुद्र बनाया अब तुम ही विछोह चाहती हो भाप जैसे उड़ा कर आकाश में मिलाना चाहती हो...
No comments:
Post a Comment