पीढियां
( लघु कथा )
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"
पैदा होते ही काफी गंभीर बीमारी से ग्रसित हुआ,माता पिता की मेहनत और प्रयत्नों मुझे नया जीवन दिया |
पिता एक अफसर थे
मैं आरम्भ से ही उनका लाडला था,रूठता,नखरे करता,बहुत ही उद्दंड और उछ्रंखल था,
स्कूल में मास्टर और उधर सारा मोहल्ला परेशान था
एक तमाचा भी कभी नहीं खाया था,माता पिता,मास्टर मुझे बहुत समझाते थे पर कभी समझ नहीं आया| शैतानी मेरा परम शौक था,
मेरे हर कार्य कलाप को माता पिता ने बर्दाश्त किया ,अच्छी स्कूल और प्रसिद्द कॉलेज में भारती करवाया ,मेरे पास वो सब था जो अधिकतर लोगों की किस्मत में नहीं होता लेकिन मैंने कभी कद्र नहीं करी,कोई भी इच्छा पूरी नहीं होती तो उन्हें कोसता ,पढायी के अलावा हर हरकत में लिप्त था|किसी तरह पढ़ लिख कर डाक्टर बना, उसमें भी उन्होंने मेरी मदद करी,फिर मेरी शादी हुयी,सुन्दर पत्नी मिली उधर प्रैक्टिस भी चल निकली ,
दो साल बाद पुत्र की प्राप्ती हुयी ,बहुत चाव से उसका नाम सुशील रखा ,वो भी सब का लाडला था बचपन से ही सुशील की हरकतें भी मेरे जैसी ही थी,कोई बात नहीं सुनता था ,मेरे नक़्शे कदम पर चल रहा था ,दादा दादी का लाड उसे भी भरपूर मिल रहा था ,धीरे धीरे सुशील का व्यवहार मेरे लिए निरंतर चिंता और विषाद का कारण बन गया ,माता पिता को समझाता था ,बिगड़ जाएगा ,इतना लाड मत किया करो ,कभी डांट भी लगाया करो,एक दिन बात बढ़ गयी मैं दोनों पर काफी क्रोधित हुआ जब बोलना बंद किया तो पिताजी बोले ,
बेटा हम तो वो ही कर रहे हैं जो तुम्हारे साथ किया था,अगर तुम बिगड़े हुए हो तो सुशील भी बिगड़ जाएगा ,जूता काटता है या नहीं पहनने वाला ही जानता है,काटता हो तो ठीक कराना पड़ता है,तब तक दर्द भुगतना पड़ता है, उसे फैंकते नहीं हैं | यह सुनते ही मैं निरुत्तर हो गया
आज अहसास हुआ,मैंने माता पिता के प्यार की कद्र नहीं करी,अब,जब मेरा पुत्र वो ही कर रहा जो मैंने किया तो मुझे गलत लगता है
लड़कपन और युवावस्था में कई बातें समझ नहीं आती ,अच्छी बात भी बुरी लगती है ,दो पीढ़ियों में सोच का फर्क होता है ,और दोनों को ही एक दुसरे को समझना पड़ता है.हम तुम्हारी पीड़ा समझते हैं अब केवल सब्र रखो अपना कर्तव्य करो, उसको समझाते रहो परमात्मा पर विश्वाश रखो सब ठीक होगा
मुझे पता नहीं था मेरा पुत्र कमरे के बाहर खडा सब सुन रहा था ,कई दिन बाद मुझे इस बात का पता चला, खैर उसके बाद ,अगले दिन से ही पुत्र का व्यवहार बदल गया फिर परिवार में किसी को कोई शिकायत नहीं रही |
आज वो भी प्रसिद्द डाक्टर है , और एक पुत्र का पिता है, पर एक सत्य मेरा पीछा नहीं छोड़ता , मेरे माता पिता से मेरा युवावस्था का व्यवहार मुझे अभी तक कचोटता है, हालांकि कई बार माता पिता से माफी माँगी थी और उन्होंने हंस कर माफ़ कर दिया था | पर फिर भी मेरा मन उस समय की बातों से सदा दुखी रहता है| अब मेरे माता पिता इस संसार में नहीं हैं पर उनकी दी हुयी सीख सदा याद रहती है,साथ ही पूरी कोशिश करता हूँ की सब तक उसे पहुँचाऊँ अब में भी दादा बन गया हूँ और पोता भी वैसे ही करता है जैसा मैंने और मेरे पुत्र ने किया था|
27-06-2011