Sunday, April 10, 2011

खलील जिब्रान

  • सत्य को जानना चाहिए पर उसको कहना कभी-कभी चाहिए।
  • दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो,  
  • जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है
  •  बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो
  •  जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है।
  • कुछ सुखों की इच्छा ही मेरे दुःखों का अंश है।
  • यदि तुम अपने अंदर कुछ लिखने की प्रेरणा का अनुभव करो तो 
  • तुम्हारे भीतर ये बातें होनी चाहिए- 
  •  1. ज्ञान कला का जादू,
  • 2. शब्दों के संगीत का ज्ञान और 
  •  3. श्रोताओं को मोह लेने का जादू।
  • यदि तुम्हारे हाथ रुपए से भरे हुए हैं 
  • तो फिर वे परमात्मा की वंदना के लिए कैसे उठ सकते हैं।
  • बहुत-सी स्त्रियाँ पुरुषों के मन को मोह लेती हैं। 
  • परंतु बिरली ही स्त्रियाँ हैं जो अपने वश में रख सकती हैं।
  • जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते
  • वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
  • मित्रता सदा एक मधुर उत्तरदायित्व है, न कि स्वार्थपूर्ति का अवसर।
  • मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं।
  • यदि अतिथि नहीं होते तो सब घर कब्र बन जाते।
  • यदि तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या, घृणा का ज्वालामुखी धधक रहा है,
  • तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो?
  • यथार्थ में अच्छा वही है जो 
  • उन सब लोगों से मिलकर रहता है जो बुरे समझे जाते हैं।
  • इससे बड़ा और क्या अपराध हो सकता है कि
  • दूसरों के अपराधों को जानते रहें।
  • यथार्थ महापुरुष वह आदमी है 
  • जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है 
  • और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है।
  • अतिशयोक्ति एक ऐसी यथार्थता है जो 
  • अपने आपे से बाहर हो गई है।
  • दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो 
  • और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो।
  • संसार में केवल दो तत्व हैं- 
  • एक सौंदर्य और दूसरा सत्य। 
  • सौंदर्य प्रेम करने वालों के हृदय में है और सत्य किसान की भुजाओं में।
  • इच्छा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत।
  • निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है,
  • इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी।
  • यदि तुम जाति, देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ 
  • तो निःसंदेह तुम देवता के समान बन जाओगे।
(विकिपी डिया से साभार)


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