Friday, July 8, 2011

शक और लत (लघु कथा )

मुकुंद को ताश खेलने के सिवाय  कोई शौक नहीं था, वो भी बिना पैसों के  ,दिन भर मेहनत करता ,घर का पूरा ख्याल रखता ,दिन भर की थकान मिटाने के लिए ,शाम को आठ बजे दोस्तों के साथ ताश खेलने चला जाता .क्योंकी सरला को ताश से नफरत थी ,इसलिए निरंतर घर से बाहर निकलने के रोज़  नए बहाने बनाता ,कभी शादी में जाने का ,कभी मीटिंग का आदि .
सरला  को भी बिना मुकुंद के चैन नहीं आता . मुकुंद के घर से बाहर निकलते ही थोड़ी थोड़ी देर में फ़ोन पर फ़ोन करती रहती ,कहाँ हो ?क्या कर रहे हो ?पूछती रहती ,दिमाग में शक का कीड़ा कुलबुलाता रहता ,मुकुंद कहीं ताश तो नहीं खेल  रहा ?मालूम करने की कोशिश करती रहती.
ताश से नफरत का भी कारण था ,उसके पिता की जुए की लत ने घर को बर्बाद कर दिया था ,इसलिए ताश के नाम से ही चिढती थी .
मुकुंद ने विवाह के बाद थोड़े दिन तक तो बर्दाश्त किया फिर ,बाद में फ़ोन उठाना ही बंद कर दिया,घंटी बजती रहती ,वो ध्यान ही नहीं देता,यार दोस्त समझाते ,फ़ोन तो उठा लिया करो ,क्या पता ? ज़रूरी काम हो ,पर उसके कानों पर जूँ नहीं रेंगती. छोडो यार, तुम्हारी भाभी का फ़ोन होगा , उसे बिना काम फ़ोन करने की आदत है, कह कर पीछा  छुड़ाता
घर आने पर ,फ़ोन नहीं उठाने के बहाने बनाता ,शोर में घंटी  की आवाज़ ही सुनायी नहीं दी या फिर साइलेंट मोड़ पर था, कह कर बात टालता.
एक दिन वो दोस्तों के साथ ताश खेल रहा था, तभी सरला का फ़ोन आया ,फ़ोन बजता रहा उसने सदा की तरह फ़ोन नहीं उठाया ,घर चलने के लिए उठा तो, मित्र के फ़ोन पर उसके किसी और मित्र का फ़ोन आया ,और मुकुंद के बारे में पूछा ,कारण पूछने पर उसने बताया ,सरला का पैर फिसल गया था ,वह सीढ़ियों से गिर गयी थी,उसके के पैर में फ्रैक्चर हो गया है,पड़ोसियों ने  अस्पताल में भर्ती कराया है .उन्होंने मुकुंद के फ़ोन पर सरला के फ़ोन से फ़ोन किया पर उसने फ़ोन नहीं उठाया .यह सुनते ही मुकुंद ने अस्पताल का नाम पूछा और तेज़ी से स्कूटर पर अस्पताल की तरफ दौड़ा ,थोड़ी दूर जाने के बाद ,कुत्ते को बचाने के चक्कर में स्कूटर फिसल गया,मुकुंद धम्म से ज़मीन पर गिर पडा,उसके शरीर और  चेहरे पर चोट आयी और पैर में फ्रैक्चर हो गया.
पीछे से आ रहे दोस्तों ने उसे भी उसी अस्पताल में भर्ती कराया जहां सरला भर्ती थी  .जल्दबाजी में चोट तो लगी ही, स्कूटर का भी सत्यानाश हो गया.अस्पताल में मुकुंद और सरला एक कमरे में आस पास के पलंग पर घायल अवस्था में लेटे थे .
मुकुंद कहने लगा,मुझे माफ़ कर दो ,अब ताश नहीं खेलूंगा ,आज के बाद फ़ोन भी हमेशा  उठाऊंगा ,सरला ने जवाब में कहा,नहीं माफी तो मुझे मांगनी चाहिए ,गलती मेरी थी,मैं ही आप पर बिना वजह शक करती थी ,आपको बार बार फ़ोन  कर के  काफी परेशान करती रही ,
अब आप ताश खेलने ज़रूर जाया करो, मैं कुछ नहीं कहूंगी, आपको केवल एक ही तो शौक है .मुझे यकीन हो गया आप जुआ नहीं खेलते,आपके दोस्तों ने मुझे सब सच सच बता दिया,कहते कहते उसकी आँखों से आंसू बहने लगे .
डा.राजेंद्र तेला"निरंतर"
07-07-2011

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