Friday, July 8, 2011

रिश्ता इंसान का इंसान से होता ,ह्रदय तो खुद का अपना होता

जिनसे मिले भी नहीं
वो तुम्हारे गुरु कैसे हो गए ?
वो कब तुम्हारे साथ थे ?
जो अब उनके दुनिया से
जाने के बाद
इतना मातम मना रहे हो
उन्हें शायद पता नहीं
मैं मातम नहीं मना रहा
वो दुनिया से नहीं गए
केवल देह छोड़ गए,
मैं चुप हूँ
एकटक उन्हें देख  रहा हूँ
उनसे संवाद कर रहा हूँ
कैसे इन्हें समझाऊँ ?
शरीर का साथ ही वास्तविक
साथ नहीं होता
मन और आत्मा का मिलन ही
सच्चा साथ होता
मैं कभी उनसे मिला नहीं
कभी उन्हें देखा नहीं
ना ही दीक्षा ली
उनकी लिखी किताबें पढी
उनसे फ़ोन पर बात करी
जीवन रहस्यों पर चर्चा करी
जीवन की बारीकियां
समझ में आयी
लगा मेरे पास बैठ कर
सब बता रहे हैं
सब्र से एक नादान को
जीवन का मर्म समझा रहे हैं
उनकी बातों को आत्मसात किया
जीवन में बदलाव महसूस किया
बिना मिले भी उनसे मिल गया
उन्हें गुरु मान लिया
राम,क्रष्ण,बुद्ध,महावीर से
कौन मिला ?
आत्मा और मन का अभेध्य
रिश्ता हो गया
मैंने कभी अपने को उनसे
दूर नहीं पाया
अब भी वो मेरे पास हैं
मेरा उनसे कोई रिश्ता नहीं
वो मेरे मन और आत्मा में बसे हैं
मेरा ह्रदय हैं
मन और आत्मा से रिश्ता
कहाँ होता ?
रिश्ता इंसान का इंसान से होता
ह्रदय तो खुद का अपना होता
1141-25-07-11

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