Wednesday, April 6, 2011

खलील ज़िब्रान की एक लघु कथा

तीन कुत्ते धूप खाते हुए बातें करते जाते थे
पहले कुत्ते ने मानो  
स्वप्न देखते हुए कहा,
वास्तव में यह बड़े आनन्द की बात है कि
हम इसश्वानयुगमें पैदा हुए हैं।
तब दूसरा कुत्ता बोला,
अजी, इतना ही नहीं , 
कला के प्रति भी हमारा झुकाव हुआ है।
चंद्रमा को देखकर हम लोग  
अपने पूर्वजों की अपेक्षा
अधिक ताल-स्वर से भौंकते हैं।
जब हम पानी में अपना  
प्रतिबिम्ब देखते हैं तो हमें
अपना चेहरा पूर्वकाल की अपेक्षा  
अधिक सुघड़ नज़र आता है।
भला, सोचो तो सही, 
कितनी सहूलियत से हम लोग
जल,थल और आकाश की यात्रा करते हैं।
 देखो , हमारे आराम के लिए,
यहां तक कि हमारी  
आंख,कान,नासिका के सुख के लिए,
 कैसे-कैसे आविष्कार हुए हैं।
तब तीसरे कुत्ते ने कहा,
 सबसे अधिक आश्चर्यजनक बात तो यह है
कि इस श्वानयुग में कितना  
सुस्थिर विचार-साम्य है।
इसी समय उन्होंने देखा कि 
 कुत्ता पकड़नेवाला चला रहा है।
तीनों कुत्ते छलांग मारते हुए गली में भागे।
भागते-भागते तीसरे कुत्ते ने कहा,
प्राण बचाना चाहते हो तो जल्दी भागो,
सभ्यता हमारे पीछे पड़ी हुई है।
06-04-2011

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