Thursday, April 21, 2011

खुदा

लोग मंदिर,
मस्जिद में मुझे ढूंढते
धर्म के ठेकेदारों से
पता मेरा पूंछते
निरंतर नए तरीकों से
मुझे खोजते
फिर भी मुझे पाते नहीं
मैं इंसान के दिल में रहता
ईमान और इंसानियत में
बसता
लालच से नफरत मुझे
सूरज बन
उजाला दिन में करता
रात को
चाँद बन कर निकलता
जो दिल से ढूंढता,
सिर्फ उसे मिलता
17-04-2011
696-120-04-11
डा.राजेंद्र तेला,"निरंतर"

1 comment:

  1. बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|

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