- सत्य को जानना चाहिए पर उसको कहना कभी-कभी चाहिए।
- दानशीलता यह नहीं है कि तुम मुझे वह वस्तु दे दो,
- जिसकी मुझे आवश्यकता तुमसे अधिक है,
- बल्कि यह है कि तुम मुझे वह वस्तु दो,
- जिसकी आवश्यकता तुम्हें मुझसे अधिक है।
- कुछ सुखों की इच्छा ही मेरे दुःखों का अंश है।
- यदि तुम अपने अंदर कुछ लिखने की प्रेरणा का अनुभव करो तो
- तुम्हारे भीतर ये बातें होनी चाहिए-
- 1. ज्ञान कला का जादू,
- 2. शब्दों के संगीत का ज्ञान और
- 3. श्रोताओं को मोह लेने का जादू।
- यदि तुम्हारे हाथ रुपए से भरे हुए हैं
- तो फिर वे परमात्मा की वंदना के लिए कैसे उठ सकते हैं।
- बहुत-सी स्त्रियाँ पुरुषों के मन को मोह लेती हैं।
- परंतु बिरली ही स्त्रियाँ हैं जो अपने वश में रख सकती हैं।
- जो पुरुष स्त्रियों के छोटे-छोटे अपराधों को क्षमा नहीं करते,
- वे उनके महान गुणों का सुख नहीं भोग सकते।
- मित्रता सदा एक मधुर उत्तरदायित्व है, न कि स्वार्थपूर्ति का अवसर।
- मंदिर के द्वार पर हम सभी भिखारी ही हैं।
- यदि अतिथि नहीं होते तो सब घर कब्र बन जाते।
- यदि तुम्हारे हृदय में ईर्ष्या, घृणा का ज्वालामुखी धधक रहा है,
- तो तुम अपने हाथों में फूलों के खिलने की आशा कैसे कर सकते हो?
- यथार्थ में अच्छा वही है जो
- उन सब लोगों से मिलकर रहता है जो बुरे समझे जाते हैं।
- इससे बड़ा और क्या अपराध हो सकता है कि
- दूसरों के अपराधों को जानते रहें।
- यथार्थ महापुरुष वह आदमी है
- जो न दूसरे को अपने अधीन रखता है
- और न स्वयं दूसरों के अधीन होता है।
- अतिशयोक्ति एक ऐसी यथार्थता है जो
- अपने आपे से बाहर हो गई है।
- दानशीलता यह है कि अपनी सामर्थ्य से अधिक दो
- और स्वाभिमान यह है कि अपनी आवश्यकता से कम लो।
- संसार में केवल दो तत्व हैं-
- एक सौंदर्य और दूसरा सत्य।
- सौंदर्य प्रेम करने वालों के हृदय में है और सत्य किसान की भुजाओं में।
- इच्छा आधा जीवन है और उदासीनता आधी मौत।
- निःसंदेह नमक में एक विलक्षण पवित्रता है,
- इसीलिए वह हमारे आँसुओं में भी है और समुद्र में भी।
- यदि तुम जाति, देश और व्यक्तिगत पक्षपातों से जरा ऊँचे उठ जाओ
- तो निःसंदेह तुम देवता के समान बन जाओगे।
(विकिपी डिया से साभार)
Very inspiring !
ReplyDelete